- इसके असर को जानना: यह समझना कि काइफ़ोस्कोलियोसिस रीढ़ की हड्डी की एक गंभीर बीमारी है
- विशेषज्ञों की राय: मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फ़रीदाबाद के डॉक्टर काइफ़ोस्कोलियोसिस के बारे में जागरूकता फैलाने और आम लोगों को जानकारी देने की इस पहल की अगुवाई कर रहे हैं
आगरा, 15 अप्रैल 2024। मारेंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फ़रीदाबाद को रीढ़ की हड्डी से संबंधित काइफ़ोस्कोलियोसिस नामक एक गंभीर बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए अपने सहयोग और प्रतिबद्धता की घोषणा करते हुए गौरव का अनुभव हो रहा है। दुनिया भर में लाखों लोग रीढ़ की हड्डी से संबंधित इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं, जिसे देखते हुए ब्रेन एंड स्पाइन सर्जरी विभाग में डॉक्टरों की टीम ने इस बीमारी से पीड़ित लोगों को सही जानकारी देने, उनकी हिमायत करने और सहायता उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। इस टीम की कमान डॉ. तरुण शर्मा, डायरेक्टर एवं एचओडी, के हाथों में है, जिसमें उन्हें डॉ. सचिन गोयल, सीनियर कन्सलटेंट, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल, फ़रीदाबाद का सहयोग प्राप्त है।
काइफ़ोस्कोलियोसिस एक गंभीर बीमारी है, जिसमें रीड की हड्डी में दो सतहों का कर्वेचर: यानी काइफोसिस, जो आगे से पीछे की ओर कर्वेचर है, तथा स्कोलियोसिस जो अगल-बगल की ओर कर्वेचर है, असामान्य हो जाता है। इस बीमारी की वजह से कई तरह की परेशानियां सामने आ सकती हैं, जिसमें कॉस्मेटिक डिफॉर्मिटी (पीठ के ऊपरी हिस्से पर एक कूबड़), चलने-फिरने में कठिनाई, सांस लेने संबंधी समस्याएँ और पुराना दर्द शामिल है। काइफोसिस और स्कोलियोसिस, दोनों एक साथ होने पर काइफ़ोस्कोलियोसिस की समस्या उत्पन्न होती है। यह बीमारी मामूली से लेकर गंभीर तक हो सकती है, जिसमें पीठ दर्द, सांस लेने में तकलीफ, चलने-फिरने में कठिनाई जैसे कई तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। गंभीर मामलों में, इस बीमारी से चेस्ट कैविटी में सिकुड़न की वजह से शरीर के अंगों के कामकाज पर बुरा असर पड़ सकता है। लोगों की जिंदगी पर गंभीर असर डालने वाली काइफ़ोस्कोलियोसिस बीमारी को अब तक ग़लत समझा गया है और सार्वजनिक तौर पर भी लोग इसके बारे में कम बात करते हैं।
डॉ. तरुण शर्मा, डायरेक्टर एवं एचओडी, न्यूरोसर्जरी विभाग, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फ़रीदाबाद, कहते हैं कि हम काइफ़ोस्कोलियोसिस से पीड़ित लोगों के लिए शुरूआत में डायग्नोसिस, चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता और उनके जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए इसके बारे में जागरूकता फैलाने की अहमियत को अच्छी तरह समझते हैं। लोगों को जानकारी देने के लिए पहलों की शुरुआत, सामुदायिक संपर्क कार्यक्रमों और चिकित्सा कर्मियों के साथ सहयोग के ज़रिये, हम काइफ़ोस्कोलियोसिस से पीड़ित मरीजों और उनकी देखभाल करने वालों को जानकारी एवं सहायता के साथ सक्षम बनाना चाहते हैं। हम इस बीमारी से पीड़ित लोगों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालने और उनकी तंदुरुस्ती को बेहतर बनाने के अपने इरादे पर अटल हैं।
डॉ. तरूण शर्मा आगे कहते हैं कि मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फ़रीदाबाद में हमें यह घोषणा करते हुए गर्व महसूस हो रहा है कि, हमारे पास बेहतर परिणामों के साथ मरीजों का इलाज करने के लिए अव्वल दर्जे की चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध हैं। हमारा लक्ष्य इस बारे में जागरूकता फैलाना है, ताकि हम जो बेहतरीन गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधाओं की पेशकश करते हैं वह उन सभी परिवारों और मरीजों के लिए आसानी से उपलब्ध हो सके, जिन्हें यह मालूम ही नहीं है कि वे इस दर्दनाक बीमारी के इलाज के लिए कहां जा सकते हैं।
काइफ़ोस्कोलियोसिस कई वजहों से हो सकता है, जिसमें जन्मजात रोग, न्यूरोमस्कुलर रोग, रीढ़ की हड्डी में चोटें, अथवा हड्डी या मांसपेशियों के विकास पर बुरा असर डालने वाली कुछ बीमारियां शामिल हैं। इसके इलाज के विकल्प कर्वेचर की गंभीरता पर निर्भर करते हैं, जिसमें फिजिकल थेरेपी, ब्रेसिंग या सर्जरी (अधिक गंभीर मामलों में) शामिल हो सकते हैं। काइफ़ोस्कोलियोसिस के लक्षणों को दूर करने और इससे जुड़ी जटिलताओं को रोकने के लिए शुरुआत में डायग्नोसिस करना और हालात को संभालना काफी मायने रखता है।
डॉ. सचिन गोयल, सीनियर कन्सलटेंट, न्यूरोसर्जरी विभाग, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल, फ़रीदाबाद कहते हैं कि हम सभी को अपने आस-पास के लोगों में इस तरह के लक्षणों के बारे में जानकारी साझा करके काइफ़ोस्कोलियोसिस जागरूकता कार्यक्रम में अपना सहयोग देने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, क्योंकि इस दिशा में उठाया गया हर कदम काइफ़ोस्कोलियोसिस से पीड़ित लोगों की जिंदगी में बदलाव ला सकता है।
भारत की 2 से 3% आबादी किसी-न-किसी हद तक काइफ़ोस्कोलियोसिस से पीड़ित है। 80% मामलों में, स्कोलियोसिस के कारण का पता नहीं चल पाता है। ऐसे मामलों को इडियोपैथिक स्कोलियोसिस कहते हैं। 10% किशोर भी कुछ हद तक स्कोलियोसिस से पीड़ित हैं। लगभग 1000 में से 1 व्यक्ति को रीढ़ की हड्डी की बीमारी काइफ़ोस्कोलियोसिस होती है, और उनमें से 10,000 में से लगभग 1 व्यक्ति में यह बीमारी गंभीर स्तर तक पहुंच जाती है।
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