सिरसा, 18 अप्रैल 2024। स्ट्रोक को 'ब्रेन अटैक' भी कहा जाता है जिसमें स्थिति बहुत ही गंभीर हो जाती है, दिमाग तक खून की सप्लाई बिगड़ जाती है और न्यूरोलॉजिकल फंक्शन प्रभावित होता है। स्ट्रोक के मामले में लक्षणों की शुरुआती पहचान के अलावा गोल्डन आवर्स का बहुत अहम रोल होता है। फोर्टिस हॉस्पिटल गुरुग्राम ने इसके बारे में लोगों को जागरूक किया।
फोर्टिस हॉस्पिटल गुरुग्राम में न्यूरोलॉजी के प्रिंसिपल डायरेक्टर एंड हेड डॉक्टर प्रवीन गुप्ता ने इस सत्र को संबोधित किया। डॉक्टर गुप्ता ने इस बात पर जोर दिया कि स्ट्रोक के अर्ली संकेतों को दरकिनार नहीं करना चाहिए और तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
फोर्टिस हॉस्पिटल गुरुग्राम में न्यूरोलॉजी के प्रिंसिपल डायरेक्टर एंड हेड डॉक्टर प्रवीन गुप्ता ने कहा कि स्ट्रोक के लक्षणों को तुरंत पहचानना बेहद महत्वपूर्ण है, ऐसे में जागरूकता जीवन बचाने में अहम भूमिका निभाती है। फास्ट मेथड इसका इंपोर्टेंट टूल होता है यानी: चेहरा, आर्म्स, स्पीच, समय। ये चार चीजें हमें सटीकता के साथ बीमारी के संकेतों का पता लगाने में गाइड करती हैं। इनके अलावा अचानक भ्रम की स्थिति होना, चलने में परेशानी, चक्कर आना, गंभीर सिरदर्द और विजन की प्रॉब्लम होने पर सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। स्ट्रोक पड़ने के बाद गोल्डन आवर का रोल सबसे अहम होता है। स्ट्रोक के बाद 4-6 घंटे के अंदर मरीज को इलाज मिलने से मृत्यु दर और लॉन्ग टर्म डिसेबिलिटी के रिस्क को टाला जा सकता है। इस अवसर के जरिए मैं लोगों को समय पर एक्शन की भूमिका के बारे में बताना चाहता हूं और ये कहना चाहता हूं कि गोल्डन आवर में इलाज नतीजे एकदम अलग किए जा सकते हैं।
स्ट्रोक के मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं- इस्केमिक और हेमोरेजिक। इस्केमिक स्ट्रोक ब्रेन के अंदर की आर्टरी ब्लॉक होने से होता है। ये ब्लॉकेज अंदर ही बनने वाले ब्लड क्लॉट (थ्रोम्बोटिक स्ट्रोक) से हो सकता है या ये शरीर के किसी अन्य हिस्से से भी आ सकता है (एम्बोलिक स्ट्रोक)। वहीं, हेमोरेजिक स्ट्रोक ब्रेन के अंदर ब्लीडिंग (इंट्रासेरेब्रल ब्लीडिंग) के कारण होता है, ये रक्त वाहिकाओं के टूटने से होता है या ब्रेन के आसपास के एरिया में ब्लीडिंग (सबराचनोइड ब्लीडिंग) से होता है। इसके अलावा, ट्रांसिएंट इस्केमिक अटैक (टीआईए) वार्निंग स्ट्रोक की तरह काम करता है, जिसमें तुरंत एक्शन लेने की आवश्यकता है।
इलाज के बारे में डॉक्टर प्रवीन ने बताया कि स्ट्रोक के इलाज की रणनीति उसके प्रकार पर निर्भर करती है। इस्केमिक स्ट्रोक में अक्सर टिशू प्लास्मिनोजेन एक्टिवेटर (टीपीए) को मैनेज करना शामिल होता है और क्लॉट हटाकर मरीजों का इलाज किया जाता है। वहीं, हेमोरेजिक यानी रक्तस्रावी स्ट्रोक के मामलों में क्लिपिंग या कॉइलिंग जैसी सामान्य सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है, साथ ही इंट्राक्रैनील प्रेशर और ब्लड ट्रांसफ्यूजन को कम करने के लिए दवाएं भी दी जा सकती हैं। ट्रांसिएंट इस्केमिक अटैक (टीआईए) के इलाज के लिए एंटीप्लेटलेट्स और एंटीकोआगुलंट्स जैसी दवाएं दी जाती हैं जो फ्यूचर में होने से स्ट्रोक से बचाती हैं और कैरोटिड एंडेटेरेक्टॉमी जैसी सर्जिकल प्रक्रिया के जरिए भी मरीजों का इलाज किया जाता है।
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