आगरा 11 फरवरी 2025। ओरल कैंसर (मुंह का कैंसर) एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है और भारतीय उपमहाद्वीप में आमतौर पर पाए जाने वाले कैंसर में से एक है। ओरल कैंसर का मुख्य कारण तंबाकू का सेवन है, जो धूम्रपान और बिना धूम्रपान वाले तंबाकू के रूप में किया जाता है। भारत में बिना धूम्रपान वाले तंबाकू (गुटखा, खैनी, पान मसाला) का उपयोग करते हैं, जबकि सिगरेट, बीड़ी और हुक्का धूम्रपान के सामान्य रूप हैं। तंबाकू सेवन से मुख कैंसर होने की संभावना 30 गुना तक बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त, शराब का सेवन भी इस कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है।
ग्लोबोकैन 2020 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में होंठ और ओरल कैंसर कुल कैंसर मामलों का 10.3 प्रतिशत (पुरुष एवं महिला दोनों) हैं और कैंसर से होने वाली मौतों में इनका योगदान 8.8 प्रतिशत है। इसका अर्थ यह है कि हर साल लगभग 1,35,000 नए मरीजों को ओरल कैंसर का पता चलता है और लगभग 75,000 मरीज इस बीमारी के कारण अपनी जान गंवा देते हैं। ओरल कैंसर में जीभ, गाल की अंदरूनी सतह (बक्कल म्यूकोसा), ऊपरी जबड़ा (अल्वोलस), निचला जबड़ा, तालू और मुंह के फर्श के कैंसर शामिल होते हैं।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत के हेड एंड नेक ऑनको सर्जरी विभाग के प्रिंसिपल कंसल्टेंट डॉ. अक्षत मलिक ने बताया कि ओरल कैंसर के लक्षणों में अक्सर तंबाकू सेवन का इतिहास पाया जाता है। मरीज आमतौर पर जीभ या गाल में न ठीक होने वाले घाव, मुंह में असामान्य वृद्धि या गांठ, दांतों का ढीला होना, मुंह खोलने में कठिनाई और गर्दन में सूजन जैसी समस्याओं के साथ डॉक्टर के पास आते हैं। कई मामलों में कैंसर के पहले कुछ पूर्व-कैंसर अवस्थाएं देखी जाती हैं, जैसे ल्यूकोप्लाकिया (मुंह के अंदर सफेद धब्बे), एरिथ्रोप्लाकिया (लाल धब्बे), और सब-म्यूकस फाइब्रोसिस (गाल के अंदर सफेद पट्टियां, मसालेदार भोजन के प्रति संवेदनशीलता और धीरे-धीरे मुंह खुलने में कठिनाई)। यदि मरीज समय रहते डॉक्टर से परामर्श लें और तंबाकू छोड़ दें, तो इन अवस्थाओं को कैंसर बनने से रोका जा सकता है।
जब मरीज कैंसर सेंटर में आता है, तो डॉक्टर द्वारा संपूर्ण जांच की जाती है, जिसमें गले और मुंह की जांच शामिल होती है। कैंसर की पुष्टि के लिए बायोप्सी की जाती है। यदि गर्दन में कोई गांठ हो, तो एफएनएसी (फाइन नीडल एस्पिरेशन साइटोलॉजी) से जांच की जाती है। कैंसर के फैलाव का पता लगाने के लिए सीटी स्कैन और एमआरआई स्कैन किया जाता है। वहीं, फेफड़ों में कैंसर के फैलाव की जांच के लिए छाती का एक्स-रे या सीटी स्कैन किया जाता है।
डॉ. अक्षत ने आगे बताया कि ओरल कैंसर का इलाज उसकी स्टेज पर निर्भर करता है। प्रारंभिक अवस्था (स्टेज पहली/दूसरी) में आमतौर पर सर्जरी या रेडियोथेरेपी से उपचार किया जाता है, जिसमें सर्जरी को प्राथमिकता दी जाती है। कुछ मामलों में ब्रैकीथेरेपी का भी उपयोग किया जाता है। उन्नत अवस्था (स्टेज तीसरी/चौथी) में मल्टी-मॉडेलिटी उपचार की आवश्यकता होती है, जिसमें सर्जरी के साथ रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी दी जाती है। सर्जरी के बाद पुनर्निर्माण के लिए स्थानीय, क्षेत्रीय या फ्री फ्लैप्स का उपयोग किया जाता है। यदि कैंसर बहुत बड़ा हो या सर्जरी संभव न हो, तो कीमो-रेडियोथेरेपी दी जाती है। इलाज के बाद मरीजों को नियमित रूप से फॉलो-अप के लिए बुलाया जाता है ताकि किसी भी पुनरावृत्ति या नए कैंसर का समय पर पता लगाया जा सके।
मुख कैंसर के इलाज के बाद मरीजों को बोलने और निगलने में कठिनाई हो सकती है, जिसके लिए विभिन्न पुनर्वास उपाय अपनाए जाते हैं। स्पीच और स्वॉलोइंग थेरेपी से मरीजों की बोलने और निगलने की क्षमता को बेहतर बनाया जाता है, जबकि माउथ ओपनिंग एक्सरसाइज जबड़े की गति बनाए रखने में मदद करती है। गर्दन और कंधे की गतिशीलता बनाए रखने के लिए फिजियोथेरेपी आवश्यक होती है। मरीजों को कुछ समय तक नरम आहार लेने की सलाह दी जाती है, और इस दौरान परिवार का सहयोग और मानसिक समर्थन बहुत महत्वपूर्ण होता है।
0 टिप्पणियाँ