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आगरा में कैंसर के मरीजों के बेहतर इलाज के लिए राजीव गांधी कैंसर संस्थान आया आगे

 

  • कैंसर देखभाल में निदान और थेरेपी संबंधित प्रगति पर विचार-विमर्श करने से लेकर अत्याधुनिक टेक्नोलोजियों की महत्वपूर्व भूमिका
  • पिछले सालों में कैंसर के इलाज में हुई उन्नति ने मरीज के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है

आगरा, 6 अप्रैल, 2024।  कैंसर देखभाल एवं अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी संस्थान राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र (आरजीसीआईआरसी) ने भारत में कैंसर के बढ़ते खतरे से लड़ने के अपने प्रयासों को और तेज कर दिया है, और इस दिशा में संस्थान ने भारतीय चिकित्सा परिषद (आईएमए), आगरा के साथ मिलकर एक सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) कार्यक्रम का आयोजन किया।  इस अवसर पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कैंसर की शीघ्र जांच का आव्हान करते हुए कैंसर देखभाल के क्षेत्र में हुई नवीन खोजों और इलाज के बाद मरीज की बेहतर जीवन गुणवत्ता के लिए सटीक निदान और उन्नत इलाज की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।     
    कार्यक्रम में आगरा और आसपास के क्षेत्र के अग्रणी चिकित्सा विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। इसमें विशेषज्ञों ने विचार-विमर्श किया कि कैसे सटीक निदान के लिए एडवांस इमेजिंग टेक्निक्स से लेकर लक्षित थेरेपी एवं इम्युनोथेरेपी जैसी अत्याधुनिक तकनीकों ने मिलकर कैंसर की बीमारी से जूझ रहे मरीजों के इलाज के परिणामों को बेहतर बनाया है।    
    रेडिएशन आॅन्कोलॉजी में हो रहे बदलावों पर चर्चा करते हुए आरजीसीआईआरसी में रेडिएशन आॅन्कोलॉजी के यूनिट हेड एवं सीनियर कंसलटेंट डॉ कुंदन सिंह चुफल ने कहा, "कैंसर के इलाज को प्रत्येक ब्रांच टेक्नोलॉजी के मामले में बड़ी प्रगति कर रही है, जिससे मरीज का जीवन आसान हो रहा है। इसी तरह रेडिएशन आॅन्कोलॉजी में टेक्नोलॉजी की प्रगति के कारण बेहतर सुनिश्चितता और सटीकता आई है, जो आज से एक दशक पहले उपलब्ध नहीं थी।"
    अब कैंसर के इलाज का फोकस बीमारी ठीक करने से आगे जाकर जीवन गुणवत्ता बेहतर करने पर है, जो कैंसर देखभाल में टेक्नोलॉजी की बड़ी उन्नति को दशार्ता है। "उदाहरण के लिए रोबोटिक मशीनों से कैंसर के सेलों को बेहतर सूक्ष्मता से लक्ष्य किया जा सकता है, जिससे बीमारी वाली जगह का सटीक इलाज सुनिश्चित होता है। इस सूक्ष्मता के कारण रेडिएशन की ज्यादा खुराक संभव हो पाती है, जिससे समय अवधि कम हो जाती है और इलाज के लिए बार-बार नहीं जाना पड़ता। सटीक निशाने के कारण आसपास के स्वस्थ टिश्यू रेडिएशन के प्रभाव में कम आते हैं, और जिससे साइड-इफेक्ट भी काफी कम होता है," डॉ कुंदन सिंह चुफल ने आगे कहा।       
    विशेषज्ञों ने ब्लड कैंसर के एक आम प्रकार मल्टीपल मायलोमा पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि इसके निदान को मृत्यु दण्ड मानकर नहीं चलना चाहिए। हालांकि मल्टीपल मायलोमा की संभावना उम्र के साथ बढ़ती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह वृद्धों तक ही सीमित है; कई बार 20 और 30 के दशक के आयु वर्ग के लोगों में भी इस बीमारी को पाया गया है।
    आरजीसीआईआरसी में सीनियर कंसलटेंट एवं यूनिट हेड - हेमाटो-आॅन्कोलॉजी, ल्यूकेमिया और मल्टीपल मायलोमा में बीएमटी एडवांसेज डॉ नरेंद्र अग्रवाल ने बीमारी के इलाज में हुई उन्नति पर चर्चा करते हुए कहा, "अब मायलोमा के इलाज के लिए कई तरह की प्रभावी चिकित्सा, लक्षित थेरैपियां, बोन मेरो ट्रांसप्लांट, और सीएआर-टी थेरेपी उपलब्ध हैं। अब चूंकि हमारे पास कई तरह की थेरैपियां और निदान के तौर-तरीके उपलब्ध हैं, हम मरीजों को अच्छी और लंबी जिंदगी देने का प्रयास कर सकते हैं।"   
    विशेषज्ञों ने इलाज के तौर तरीकों को 'नोवल एजेंट-बेस्ड थेरेपी' और इम्युनोथेरेपियों की दो व्यापक श्रेणियों में बांटा। "नोवल एजेंट-बेस्ड थेरेपी काफी प्रभावी होती हैं और मल्टीपल मायलोमा के मामले में सबसे पहले इसी थेरेपी की सलाह दी जाती है। लेकिन, यदि मरीज शुरूआत में सही लक्षण नहीं दशार्ता है, या फिर बीमारी फिर से पहले की अवस्था में आ जाती है, तो हम इम्युनोथेरेपी से इलाज कर सकते हैं। इन थेरेपियों में शरीर में मौजूद मायलोमा या कैंसर सैल्स पर एंटीबॉडीज का प्रयोग किया जाता है।"    
    भारतीय चिकित्सा परिषद (आईएमए), आगरा के अध्यक्ष डॉ मुकेश गोयल ने समाज में जागरूकता, समय से जांच-पड़ताल, सटीक निदान और कैंसर के मरीजों के लिए बेहतर परिणाम हेतु नवीन थेरेपियों तक उनकी पहुंच सुनिश्चित करने के महत्व पर जोर देते हुए कैंसर से लड़ाई की रणनीतियों पर चर्चा की।  आयोजन हेल्थकेयर पेशेवरों और चिकित्सकों को अपने रोगियों को सर्वोत्तम देखभाल प्रदान करने के लिए आवश्यक नवीनतम ज्ञान और गहन जानकारी देने में सहायक रहा, जिससे उन्हें कैंसर के उपचार में हो रही प्रगति के साथ-साथ चलने में सक्षम बनाया गया।

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