मोहाली, 14 अप्रैल 2024। इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी कार्डियोलॉजी की एक ब्रांच है जो हार्ट की इलेक्ट्रिकल गतिविधि और हार्ट रिदम डिसऑर्डर के साथ इसके संबंधों पर केंद्रित होती है। इसे एरिथमिया भी कहा जाता है।एरिथमिया हार्ट की लय में असामान्यताओं को कहते हैं, जो अनियमित हार्ट बीट या असामान्य हार्ट रेट के रूप में नजर आती है। पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मानित डॉक्टर टीएस क्लेर कहते हैं ये डिस्टर्बेंस नुकसान न पहुंचाने वाली से लेकर जीवन को खतरा पहुंचाने वाली, दोनों तरह की हो सकती हैं. दुनिया भर में इससे लाखों लोगों को प्रभावित होते हैं। डॉक्टर टीएस क्लेर बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल (नई दिल्ली) में बीएलके-मैक्स हार्ट एंड वैस्कुलर इंस्टिट्यूट के चेयरमैन व एचओडी और पैन मैक्स इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी के चेयरमैन हैं।
एरिथमिया क्या होता है?
दिल की धड़कन में होने वाली असामान्यता को एरिथमिया के रूप में जाना जाता है। सामान्यत: दिल अपने गति से रिदम में धड़कता रहता है और पूरे शरीर में ब्लड की सप्लाई करता रहता है। लेकिन जिन लोगों को एरिथमिया की शिकायत होती है उनकी ये रिदम बिगड़ जाती है। एरिथमिया तब होता है जब हार्ट बीट के समन्वय करने वाले इलेक्ट्रिकल इम्पल्स ब्लॉक हो जाते हैं या उनके रास्ते असामान्य हो जाते हैं। इससे हार्ट बीट बहुत तेज होने (टैकीकार्डिया), बहुत स्लो होने (ब्रैडीकार्डिया) और असामान्य होने का खतरा रहता है।
एरिथमिया के लक्षण
एरिथमिया के लक्षण इसके प्रकार और गंभीरता के हिसाब से अलग-अलग हो सकते हैं। इसके कुछ कॉमन लक्षण हैं-
- पैल्पिटेशन (सीने में फड़फड़ाहट या तेजी का अनुभव होना)
- चक्कर आना या हल्कापन
- बेहोशी या वैसी हालत होना (सिंकोप)
- सांस की तकलीफ
- सीने में दर्द या बेचैनी
- थकान
- कमजोरी
एरिथमिया के प्रकार
एरिथमिया के कई प्रकार होते हैं-
- आर्ट्रियल फाइब्रिलेशन (एएफआईबी): ये एरिथमिया का सबसे आम प्रकार होता है. इसमें दिल के ऊपर चैम्बर में बहुत ही तेज और असामान्य धड़कनें होती हैं।
- ब्रैडीकार्डिया: इसमें दिल बहुत ज्यादा धीमी गति से धड़कता है। आमतौर पर इसमें रेस्टिंग हार्ट रेट 60 बीट प्रति मिनट से नीचे होता है।
- टैकीकार्डिया: इसमें हार्ट बहुत ही तेजी से धड़कता है। आमतौर पर इसमें रेस्टिंग हार्ट रेट 100 बीट प्रति मिनट से ज्यादा होता है।
- सुप्रावेंट्राइकुलर टैकीकार्डिया (एसवीटी): इसमें वेंट्रिकल्स के ऊपर रेपिट हार्ट रेट के एपिसोड होते रहते हैं।
- वेंट्रीकुलर टैकीकार्डिया (वीटी): इसमें दिल के निचले चैम्बर (वेंट्रिकल्स) में रेपिड हार्ट रेट होता है, जो जानलेवा भी हो सकता है।
एरिथमिया का इलाज
एरिथमिया के इलाज में दिल की धड़कनों को नॉर्मल किया जाता है, लक्षणों को कंट्रोल किया जाता है और कॉम्प्लिकेशंस से बचाव किया जाता है।
- दवा: हार्ट रिदम और हार्ट रेट को रेगुलेट करने के लिए एंटी-एरिथमिक ड्रग्स का उपयोग किया जाता है।
- कार्डियोवर्जन: नॉर्मल हार्ट रिदम के लिए इलेक्ट्रिकल शॉक दिए जाते हैं.
- कैथेटर एब्लेशन: एरिथमिया करने वाले हार्ट टिशू के छोटे एरिया को इस प्रक्रिया के जरिए नष्ट किया जाता है.
- इम्प्लांटेबल डिवाइस: हार्ट रेट को सामान्य करने के लिए पेसमेकर किया जाता है या इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (आईसीडी) के जरिए असामान्य हार्ट रिदम को मॉनिटर किया जाता है और सही किया जाता है।
- लाइफस्टाइल में बदलाव: धूम्रपान छोड़ना, शराब का सेवन कम करना और कैफीन कम लेना, तनाव कम करना और हेल्दी डाइट और वजन को नियंत्रित कर एरिथमिया को मैनेज किया जा सकता है।
किस उम्र के लोगों पर होता है असर?
नवजात से लेकर बुजुर्ग तक, एरिथमिया से किसी भी उम्र के लोग प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि, बढ़ती उम्र के साथ ही एरिथमिया होने का रिस्क ज्यादा रहता है, क्योंकि बॉडी में बदलाव आते रहते हैं और अन्य हार्ट डिजीज काफी आम हो जाती हैं। ज्यादा उम्र के लोगों में एट्रियल फाइब्रिलेशन जैसे कुछ निश्चित एरिथमिया होते हैं।
इस बातों पर भी करें गौर
- रिस्क फैक्टर: एरिथमिया को जन्म देने वाले कई रिस्क फैक्टर होते हैं। हाई ब्लड प्रेशर, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट फेल, डायबिटीज, मोटापा, शराब का ज्यादा सेवन या कैफीन का सेवन, धूम्रपान, कुछ खास दवाएं या रिक्रिएशनल ड्रग्स के कारण एरिथमिया होने का रिस्क रहता है।
- दिक्कतें: एरिथमिया का इलाज न कराया जाए तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसके कारण स्ट्रोक, हार्ट फेल और सडन कार्डियक अरेस्ट का खतरा रहता है।
- डायग्नोसिस: एरिथमिया का डायग्नोज करने के लिए मेडिकल हिस्ट्री, फिजिकल एग्जामिनेशन और कुछ डायग्नोस्टिक टेस्ट कराए जाते हैं। टेस्ट में ईसीजी यानी इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम, होल्टर मॉनिटर, इवेंट रिकॉर्डर, इकोकार्डियोग्राम और इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडीज की जाती है।
- बचाव: दिल को स्वस्थ रखने वाली लाइफस्टाइल फॉलो करें और जो लक्षण बताए गए हैं उनको कंट्रोल करें। इसके अलावा इलाज के बताए गए विकल्पों को फॉलो करें, इससे एरिथमिया से बचा जा सकता है, या उसके खतरे को कम किया जा सकता है।
एरिथमिया को समझने के लिए इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी एक अहम रोल अदा करती है। रोग का शुरुआती स्टेज में पता लगना, एक्यूरेट डायग्नोसिस और सही तरीके से उसका इलाज कराने से एरिथमिया के मरीजों के लिए अच्छे रिजल्ट आते हैं और उनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ में सुधार आता है।
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