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हार्ट डोनेशन से 48-वर्षीय महिला मरीज को मिला नया जीवन



आगरा 18 दिसंबर 2025। फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफएमआरआई), गुड़गांव में 48-वर्षीय एक महिला मरीज को सफल हृदय प्रत्यारोपण के बाद नए जीवन का उपहार मिला है। यह मरीज एंड-स्टेज हार्ट फेलियर से ग्रस्त थीं। डॉक्टरों के मुताबिक, वह डाइलेटेड कार्डियोमायोपैथी (डीसीएमपी) से पीड़ित थी, इस कंडीशन में हृदय की मांसपेशियां कमजोर होकर काफी फैल जाती हैं, और नतीजतन हृदय सही ढंग से ब्लड पंप नहीं कर पाता। मरीज को जब फोर्टिस लाया गया था उनका हार्ट फंक्शन गिरकर मात्र 15% रह गया था। उन्हें इलाज के लिए इससे पहले भी कई बार अन्य अस्पतालों में भर्ती कराया गया था।
    इस बीच, गुरुग्राम स्थित आर्टेमिस हॉस्पीटल में 47-वर्षीय एक महिला को गंभीर स्ट्रोक के बाद ब्रेन डैड घोषित किया गया था। मृतक के परिजनों ने उदारता और मानवता का शानदार उदाहरण पेश करते हुए उनके अंगों को दान करने का फैसला किया। इसके बाद, दोनों अस्पतालों के बीच एक ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया गया जिसके चलते केवल 17 मिनट में आर्टेमिस से एफएमआरआई तक डोनर हार्ट पहुंचाया गया।
    हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी सवेरे 3.00 बजे शुरू की गई और लगभग 2.5 घंटे चली। सवेरे 5.30 बजे, जब आर्टेरियल क्लैम्प को निकाला गया, तो प्रत्यारोपित हृदय खुद-ब-खुद धड़कने लगा। सवेरे 8.00 बजे मरीज को आईसीयू में शिफ्ट किया गया, और अगले दिन उनके शरीर में लगी नलियों को हटा दिया गया। अब वह स्थिर हैं, सचेत हैं, बैठ रही हैं और अपने परिजनों के साथ बातचीत भी करने लगी हैं तथा सहारे से चलने लगी हैं।
    इस प्रत्यारोपण का नेतृत्व कर रहे डॉ उद्गीथ धीर, प्रिंसीपल डायरेक्टर-कार्डियो थोरेसिक एंड वास्क्युलर सर्जरी, फोर्टस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने कहा, मरीज को जब हमारे पास लाया गया था तो उनकी हालत काफी नाजुक थी, उनके हृदय की कार्यक्षमता घटकर करीब 15% रह गई थी, जिसकी वजह से उनका बचना काफी चुनौतीपूर्ण लग रहा था। लेकिन डोनर हार्ट मिलने के बाद, ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया काफी सुगम रही, और प्रत्यारोपण के बाद जल्द ही इसने अपने आप धड़कना शुरू कर दिया, जो कि काफी उत्साहजनक क्लीनिकल संकेत था। डोनर और रेसीपिएंट (प्रापक) की उम्र तथा शारीरिक प्रोफाइल के मैच होने से मरीज की रिकवरी में काफी मदद मिली। अब वह स्थिर हैं और अपने परिजनों से बातचीत कर पा रही हैं। उनकी रिकवरी अपनी अपेक्षा से भी ज्यादा बेहतर रही है। इस मामले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि अंगदान और समय पर मेडिकल सहायता से वाकई मरीजों की जिंदगी का भविष्य नए सिरे से लिखा जा सकता है।
    श्री यश रावत, फैसिलिटी डायरेक्टर, फोर्टस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने कहा, इस हार्ट ट्रांसप्लांट ने यह स्पष्ट रूप से दर्शाया है कि तालमेल के साथ किए गए मेडिकल प्रयासों और डोनर परिवार की उदारता में कितनी ताकत होती है। हम डोनर परिवार के बेहद आभारी हैं जिन्होंने एक अनजान, अपरिचित मरीज को नया जीवन दिया है। फोर्टिस में, हम कार्डियाक केयर को उन्नत बनाने तथा सरकारी निकायों एवं गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर अंगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा मानना है कि ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे हर व्यक्ति को जिंदगी जीने का मौका मिलना चाहिए।
    मेडिकल इतिहास और ग्लोबल ट्रांसप्लांट रजिस्ट्री में दर्ज मामलों से इस बात के संकेत मिलते हैं कि डोनर और रेसिपिएंट (प्रापक) के लिंग तथा शारीरिक प्रोफाइल के आपस में मैच होने पर ट्रांसप्लांट के परिणामों में काफी सुधार हो सकता है। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि कुछ मिसमैच (बेमेल) ट्रांसप्लांट, खासतौर से महिला डोनर हार्ट को पुरुष रेसिपिएंट को लगाने पर, कई बार उसके रिजेक्ट होने (अस्वीकार किए जाने) का जोखिम अधिक रहता है जो कि संरचनात्मक और शारीरिक अंतर की वजह से होता है।
    इसके उलट, महिला से महिला का मेल अक्सर बेहतर साइज़ मैचिंग और मेटाबॉलिक अनुकूलन सुनिश्चित करता है, जिससे प्रत्यारोपण के बाद सुगमता का लाभ मिलता है और रिकवरी प्रोफाइल भी बेहतर बनती है। लेकिन, विशेषज्ञ इस बात पर भी जोर देते हैं कि प्रत्येक मामले का मूल्यांकन व्यक्तिगत आधार पर किया जाना चाहिए, जो कि मरीज की स्थिति, मेडिकल उपयुक्तता और डोनर की उपलब्धता जैसे कई पहलुओं पर निर्भर है।

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