लखनऊ 2 दिसंबर 2025। भारत में घुटने का दर्द, खासकर ऑस्टियोआर्थराइटिस (OA) के कारण, बहुत आम समस्या है। यह समस्या अधिकतर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में देखी जाती है, और महिलाओं में इसकी संभावना पुरुषों की तुलना में ज्यादा होती है। मोटापा, पारिवारिक इतिहास या पहले हुए जोड़ों की चोटें इस रोग के खतरे को और बढ़ा देती हैं। धीरे-धीरे बढ़ता दर्द, जकड़न और चलने-फिरने में दिक्कतें व्यक्ति की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित करती हैं और बुजुर्गों में यह विकलांगता का प्रमुख कारण बन जाती है।
हालांकि इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन समय पर पहचान और उचित उपचार से लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। शुरुआती अवस्था में वज़न नियंत्रित रखना, हल्की एक्सरसाइज़ करना, फिजियोथेरेपी, दर्द निवारक दवाएं और डॉक्टर की सलाह से एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाओं का सेवन काफी मददगार साबित होता है। लेकिन जब ये उपाय कारगर नहीं होते, तब नी रिप्लेसमेंट जैसी सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है।
मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत के ऑर्थोपेडिक्स, जॉइंट्स एवं रोबोटिक सर्जरी विभाग के ग्रुप चेयरमैन एवं चीफ सर्जन डॉ. एस.के.एस. मार्या ने बताया कि “अक्सर लोग “रोबोट” शब्द सुनकर समझते हैं कि मशीन अपने आप सर्जरी करती है, जबकि हकीकत यह है कि सर्जन ही हर प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। रोबोट एक हाई-टेक असिस्टेंट की तरह काम करता है, जो सर्जरी को अत्यंत सटीकता और सुरक्षा के साथ पूरा करने में मदद करता है। इसे ऐसे समझें जैसे सर्जरी के लिए GPS — दिशा डॉक्टर तय करता है, पर रोबोट सटीक मार्ग दिखाता है। रोबोटिक-एसिस्टेड नी रिप्लेसमेंट तकनीक ने घुटने के ऑपरेशन को पूरी तरह बदल दिया है। पहले पारंपरिक सर्जरी में सर्जन हाथ से क्षतिग्रस्त हड्डी और कार्टिलेज हटाकर इम्प्लांट लगाते थे, जिसमें थोड़ी ह्यूमन एरर की संभावना रहती थी। लेकिन रोबोटिक तकनीक के साथ, सर्जन कंप्यूटर-गाइडेड सिस्टम से मिलीमीटर की सटीकता के साथ हड्डी काटते हैं और इम्प्लांट लगाते हैं, जिससे जोड़ अधिक नैचुरल और लंबे समय तक टिकाऊ बनता है।“
नई तकनीक में CT स्कैन की आवश्यकता भी नहीं पड़ती, जिससे मरीज को रेडिएशन से राहत मिलती है। इसके अलावा, यह मिनिमली इनवेसिव सर्जरी होती है — यानी कम चीरा, कम खून बहना, कम दर्द, जल्दी रिकवरी और अस्पताल में कम दिन रुकना। साथ ही यह तकनीक स्वस्थ हड्डी और टिश्यू को बचाकर रखती है, जो युवा मरीजों के लिए विशेष रूप से लाभदायक है।
डॉ. मार्या ने आगे बताया कि “क्लिनिकल स्टडीज़ और डॉक्टरों के अनुभव बताते हैं कि इस तकनीक से इम्प्लांट की पोज़िशनिंग अधिक सटीक होती है, जिससे घुटने की मूवमेंट प्राकृतिक महसूस होती है। आसपास के टिश्यू को कम नुकसान पहुंचता है, मरीज को जल्दी आराम मिलता है और इम्प्लांट ज्यादा समय तक टिकता है। यह जानना ज़रूरी है कि सर्जरी में हर निर्णय सर्जन का होता है, रोबोट केवल सहायता करता है। इस तकनीक को पूरी तरह परीक्षण के बाद मंज़ूरी दी गई है और सर्जन को इसके लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।“
भविष्य में, जैसे-जैसे तकनीक और एडवांस होगी, रोबोटिक जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी और भी सामान्य होती जाएगी। इससे मरीजों को कम दर्द, तेजी से रिकवरी और ऐसे जोड़ों की सुविधा मिलेगी जो बिल्कुल प्राकृतिक महसूस होंगे। यह सचमुच एक ऐसे युग की शुरुआत है, जहां लोग दोबारा बिना दर्द के चल-फिर सकेंगे और जीवन का आनंद ले सकेंगे।

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